दिल्ली। दुनिया के ग्लेशियर (हिमनद) बहुत तेजी से पिघल रहे हैं। ताजा अध्ययन में सामने आया कि 2022 से 2024 के बीच, ग्लेशियरों ने अब तक की सबसे अधिक बर्फ खो दी है। इससे पानी की कमी, समुद्र के बढ़ते स्तर और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है। ग्लेशियरों के इस संकट की तरफ ध्यान खींचने के लिए शुक्रवार को पहली बार विश्व ग्लेशियर दिवस मनाया गया। इस मौके पर विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और विश्व ग्लेशियर निगरानी सेवा (डब्ल्यूजीएमएस) की ओर से एक रिपोर्ट जारी कर चेताया गया है।
डब्ल्यूजीएमएस की रिपोर्ट के अनुसार, 1975 से अब तक दुनियाभर के ग्लेशियर 9,000 अरब टन से अधिक बर्फ खो चुके हैं। यह इतनी बर्फ है कि इससे जर्मनी के ऊपर 25 मीटर मोटी बर्फ की चादर बिछ सकती है। 2024 लगातार तीसरा साल था जब विश्वभर के सभी 19 प्रमुख ग्लेशियर क्षेत्रों ने बर्फ खोई। डब्ल्यूएमओ की महासचिव सेलेस्टे साओलो का कहना है कि ग्लेशियरों को बचाना महज पर्यावरण की चिंता नहीं है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक जरूरत है। यह हमारे अस्तित्व से जुड़ा मसला है।
संयुक्त राष्ट्र ने किया 2025 को विश्व ग्लेशियर संरक्षण वर्ष घोषित
ग्लेशियरों के बड़े पैमाने पर नुकसान को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 2025 को अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष घोषित किया है। यह पहल यूनेस्को, डब्ल्यूएमओ और 35 देशों के 200 से अधिक संगठनों से समर्थित है। इस वर्ष का सर्वश्रेष्ठ ग्लेशियर पुरस्कार शुरू किया है। इसके पहला विजेता अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित दक्षिण कैस्केड ग्लेशियर बना है।
मध्य यूरोप के लगभग 40% ग्लेशियर गुम…
महासागरों के गर्म होने के बाद ग्लेशियर पिघलना समुद्र के वैश्विक बढ़ते स्तर की दूसरी सबसे बड़ी वजह है। 2000 से 2023 के बीच ग्लेशियरों ने अपनी बची हुई बर्फ का पांच फीसदी खो दिया है और मध्य यूरोप के लगभग 40 फीसदी ग्लेशियर गायब हो चुके हैं।