फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल देश:भारत की रैंकिंग 139वें से 136वें स्थान पर पहुंची, पाकिस्तान 121वें रैंक के साथ हमसे बेहतर

न्यूयॉर्क। संयुक्त राष्ट्र की एनुअल हैप्पीनेस इंडेक्स में फिनलैंड लगातार पांचवें साल दुनिया का सबसे खुशहाल देश चुना गया है। जबकि तालिबानी हुकूमत से जूझ रहा अफगानिस्तान सबसे नाखुश देश है।

डेनमार्क, आइसलैंड, स्विटजरलैंड और नीदरलैंड टाॅप 5 में खुशहाल देशों में शामिल हैं। जबकि अमेरिका 16वें और ब्रिटेन 17वें नंबर है। इस लिस्ट में भारत का नंबर 136वां है। पिछले बार भारत का नंबर 139वां था, यानी भारत की रैंकिंग में तीन पायदान का सुधार हुआ है। वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान 121वें रैंक के साथ भारत से बेहतर स्थिति में है।

शुक्रवार को जारी की गई इस लिस्ट में सर्बिया, बुल्गारिया और रोमानिया में बेहतर जीवन जीने में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं वर्ल्ड हैप्पीनेस टेबल में सबसे बड़ा फॉल लेबनान, वेनेजुएला और अफगानिस्तान की रैंक में आया।

नाखुश देशों का मौजूदा हाल
आर्थिक मंदी का सामना कर रहा लेबनान का नंबर 144 है। जबकि जिम्बाब्वे 143 नंबर पर रहा। पिछले साल अगस्त में तालिबान के फिर से सत्ता में आने के बाद से युद्ध से पीड़ित अफगानिस्तान, पहले से ही इस सूची में सबसे नीचे है। यूनिसेफ का अनुमान है कि अगर मदद न दी गई तो वहां पांच साल से कम उम्र के दस लाख बच्चे इस सर्दी में भूख से मर सकते हैं।

रूस-यूक्रेन जंग से पहले बन चुकी थी रिपोर्ट
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट पिछले दस साल से बनाई जा रही है। इसे तैयार करने के लिए लोगों की खुशी के आंकलन के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक आंकड़ों को भी देखा जाता है। इसे तीन साल के औसत डेटा के आधार पर खुशहाली को जीरो से 10 तक का स्केल दिया जाता है। हालांकि यूनाइटेड नेशन की यह लेटेस्ट रिपोर्ट यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पहले तैयार हो गई थी। इसलिए जंग से जूझ रहे रूस का नंबर 80 और यूक्रेन का नंबर 98 है।

आधार जिन पर तैयार हुई सूची
रिपोर्ट के को-ऑथर जेफरी सैक्स ने लिखा है- सालों से वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट का बनाने के बाद यह सीखा है कि सोशल सपार्ट, उदारता, गवर्नमेंट की ईमानदारी खुशहाली के लिए बेहद जरूरी हैं। विश्व के नेताओं को यह ध्यान रखना चाहिए। रिपोर्ट बनाने वालों ने कोरोना महामारी के पहले और बाद के समय का इस्तेमाल किया। वहीं लोगों की भावनाओं की तुलना करने के लिए सोशल मीडिया डेटा भी लिया। 18 देशों में चिंता और उदासी में मजबूत वृद्धि मिली। लेकिन, क्रोध की भावनाओं में गिरावट देखी।

 

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