वाराणसी।
काशी की प्राचीनतम कलाओं में नवीनतम संदर्भ शामिल होते गए। यही कारण है कि पुरातन होकर कलाएं नूतन बनी रहीं। काशी की काष्ठकला भी इस परिपाटी से अछूती नहीं रही। खासतौर से लकड़ी के खिलौने। कभी चिड़ियों, जानवरों से लेकर बैंड पार्टी, गर्दन हिलाते बूढ़ा-बूढ़ी, बैलगाड़ी और रेलगाड़ी तक सीमित रहे लकड़ी खिलौना उद्योग ने इस सदी के दो बड़े बदलावों को भी खिलौनों की शृंखला में जोड़ लिया है। काशी के विश्वनाथ धाम और अयोध्या के श्रीराम मंदिर का मॉडल तैयार करके खिलौना उद्योग को बड़ी परवाज दी है।
इसकी मांग पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। काशी विश्वनाथ धाम का मॉडल यहां आने वाले सैलानियों को बहुत भा रहा है। इन्हें घरों में सिर्फ सजाने के लिए ही नहीं बल्कि अपने शुभचिंतकों, मित्रों को स्मृति चिह्न के रूप में देने के लिए उपयोग किया जा रहा है। जीआई उत्पाद में शामिल लकड़ी के खिलौनों में यह प्रयोग, बीते कुछ दशकों से लगातार गिरावट का शिकार हो रहे लकड़ी खिलौना के बाजार में नई ऊंचाई देने में सफल होता दिख रहा है। लकड़ी के खिलौने बनाने वाले बिहारी लाल अग्रवाल और अमर अग्रवाल ने बताया कि विश्वनाथ धाम और राम मंदिर का मॉडल वाराणसी के लकड़ी के खिलौना उद्योग के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है।