हर साल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का सूरज कुछ अलग होता है. जैसे उसकी किरणों में कोई नई उम्मीद, नई शुरुआत और नवचेतना समाई होती है. यही है गुड़ी पड़वा, हिंदू नववर्ष की पहली सुबह, जो सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि जीवन में शुभता के प्रवेश की तरह है.
गुड़ी पड़वा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बेहद खास पर्व है. ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी, इसलिए यह दिन नए आरंभ का प्रतीक बन चुका है. इस बार गुड़ी पड़वा 30 मार्च को चैत्र नवरात्रि की शुरुआत के साथ मनाया जाएगा, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.
तीन परंपराएं जो इस पर्व को बनाती हैं संपूर्ण
1. गुड़ी की पूजा
गुड़ी यानी एक डंडे पर उल्टा रखा गया लोटा, जिस पर चेहरे की आकृति उकेरी जाती है और रेशमी वस्त्र लपेटा जाता है. यह प्रतीक है विजय, समृद्धि और संरचना का. खासतौर पर महाराष्ट्रीय परंपरा में इसका विशेष स्थान है. इसे घर के मुख्य द्वार या छत पर फहराया जाता है, मानो कह रहा हो—”अब नया आरंभ हो चुका है.”
2. नीम और मिश्री का सेवन
इस दिन नीम की कोमल पत्तियां और मिश्री खाना न केवल परंपरा है, बल्कि मौसम परिवर्तन के इस काल में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का उपाय भी. आचार्य भारद्वाज कहते हैं, “ये परंपरा आयुर्वेद का उपहार है, जिससे शरीर गर्मी के मौसम के लिए तैयार होता है.”
3. पकवान, खासतौर पर पूरन पोली
मीठे का स्वाद हर शुभ अवसर पर ज़रूरी होता है. और गुड़ी पड़वा पर पूरन पोली न बने, तो पर्व अधूरा लगता है. चने की दाल और गुड़ से बनी यह पारंपरिक रोटी केवल स्वाद नहीं, बल्कि ऊर्जा और पाचन के लिहाज़ से भी अद्भुत है. यह भोजन न केवल तन को पोषण देता है, बल्कि त्योहार की आत्मा में मिठास घोल देता है.