बिलासपुर। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की डिवीजन बेंच ने आईटीआई के ट्रेनिंग अफसरों को निकालने के आदेश को अवैधानिक बताया है। शासन की अपील खारिज होने पर आईटीआई के प्रशिक्षण अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने कहा है कि केवल कारण बताओ नोटिस जारी कर किसी भी शासकीय कर्मचारी को सेवा से बाहर नहीं किया जा सकता। डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को सही ठहराते हुए शासन की अपील को निरस्त कर दिया है।
दरअसल, आईटीआई के प्रशिक्षण अधिकारियों को आठ साल सेवा करने के बाद विभाग ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया था, जिसके खिलाफ प्रशिक्षण अधिकारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। दुर्गेश कुमारी, महेश, टिकेन्द्र वर्मा हेमेश्वरी, शालिनी समेत अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया था कि उन्हें रोजगार और प्रशिक्षण विभाग के संयुक्त निदेशक ने 10 जनवरी 2013 को आदेश जारी किया और प्रशिक्षण अधिकारी के पद पर परीविक्षा अवधि में नियुक्ति दी थी। इसमें दो साल की सेवा सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद उन्हें स्थायी नियुक्ति दी गई।
करीब आठ साल बाद 6 अक्टूबर 2021 को तकनीकी शिक्षा और रोजगार विभाग के निदेशक ने कारण बताओ नोटिस जारी किया और कहा कि 10 जनवरी 2013 को जारी आदेश छत्तीसगढ़ लोक सेवा अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जातियां और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण नियम, 1998 के प्रावधानों के खिलाफ है, इसलिए धारा 14 के आधार पर नियुक्ति आदेश निरस्त किया जाता है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को प्रशिक्षण अधिकारी के पद पर सरकारी सेवकों की तरह पुष्टि की गई है। उन्होंने अपनी संबंधित सेवाओं के 8 वर्ष से अधिक पूरे कर लिए हैं। वे भारत के संविधान के अनुच्छेद 311(2) के तहत गारंटीकृत संवैधानिक संरक्षण के हकदार हैं और इस प्रकार उनकी सेवाओं को केवल कारण बताओ नोटिस के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता है। डिवीजन बेंच ने 6 अक्टूबर 2021 को जारी आदेश को निरस्त करते हुए सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराया है।